Saturday, November 4, 2017

Posted by Unknown On November 04, 2017








आज में कॉलेज से ऑटो में घर रही थी पर आज का दिन कुछ अलग था क्योकि आज कुछ अलग सा हुआ जो मुझे अच्छा नहीं लगा।
मुझे लगता था की हमारे देश की पहचान यहाँ की सभ्यता, संस्कार , अपनेपन , अच्छाई से होती हैं  पर आज जो हुआ उसमे मुझे कही भी ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया।  इसे पढ़ने के बाद आपको भी शायद ऐसा ही लगेगा।
       आज हुआ ये की में जिस ऑटो में, मै बैठी थी उसमे एक बृद्ध एवं गरीब महिला भी बैठी थी। उसे कुम्भा मार्ग उतरना था पर उसे यह पता नहीं था की कुम्भा मार्ग कहाँ हैं , हो सकता हैं की वो पहली बार अकेली सफ़र कर रही हो। 
जब कुम्भा मार्ग निकल गया तो कुछ आगे जाते ही उस बृद्ध महिला ने पूछा की "कुम्भा मार्ग गया क्या ?"
तो उस ऑटो वाले ने कहा की कुम्भा मार्ग तो निकल चूका हैं। इतना कहकर ऑटो वाले ने उस बृद्ध महिला को रास्तें में ही ऑटो से उतार दिया।  और उस महिला से कहा की मुझे मेरा पूरा किराया चाहिए। पर उस महिला की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उसने ऑटो वाले को 10 में से 8 रूपए लेने को कहा। पर उस ऑटो वाले ने इंसानियत नहीं दिखाते हुए उस बृद्ध महिला को तो उपहास करते हुए ऑटो से उतार दिए और उसका सामान ऑटो में ही रख कर आगे चला गया।

 उस औरत ने उसका सामान देने के लिए सड़क पर भागते और रोते , चिल्लाते हुए कहा। लेकिन जब तक उस ऑटो वाले ने ऑटो में बैठे लोगे के कहने पर ऑटो को नहीं रोका तब तक वह बृद्ध महिला उस ऑटो के पीछे-पीछे अपने सामान को लेने के लिए टोंक रोड पर " जहाँ आने-जाने वाले इतने लोग देख रहे थे वहाँ वह बृद्ध महिला रोती-चिल्लाती जा रही थी।                          
                   उस ऑटो वाले ने उस बृद्ध महिला को इतना दुःखी किया, उसका इतना मज़ाक उड़ाया। उस ऑटो वाले ने उस बृद्ध महिला की गरीबी और उसके बुढ़ापे का भी लिहाज़ नहीं किया। उस स्वार्थी इंसान ने मात्र 2 रूपए के लिए इंसानियत त्याग दी।  उन 2 रुपयों का बदला उस ऑटो वाले ने बृद्ध महिला को इतनी ठेस पहुँचाकर लिया, फिर भी उस ऑटो वाले ने उस बृद्ध महिला का सामान 2 रूपए लेने के बाद ही दिया।
उस महिला ने कहा की मुझे तो अब रास्ता भी नहीं पता में अकेली कैसे जाउंगी।
        तब मेने मेरी फ्रेंड से कहा की इन्हे कुम्भा मार्ग तक छोड़ कर आए क्या ? इसके ज़बाब में उसने कहा की " हमने क्या पूरी दुनिया का ठेका ले रखा है क्या,जो हर किसी की मदद करते फिरे
यह बात मुझे बहुत गलत लगी और बहुत देर तक में यही बात सोचती रही। मेने यह सोचा की ये बात उस ऑटो में बैठे किसी भी इंसान के दिमाग में नहीं आयी की उस महिला की थोड़ी सी मदद कर दे पर शायद ज्यादातर लोगो को ये लगता होगा की हमें क्या मतलब हैं, हमें क्या करना हैं उनकी वो जानें पर वो लोग यह नहीं सोचते की एक दिन उनका भी बुढ़ापा आएगा और वो भी किसी किसी काम को करने में असमर्थ होंगे, और तब उनके साथ ऐसी घटना हो गई तो उन पर क्या बीतेगी तब वो अकेले क्या करेंगे ?

             में यह सोचती हूँ की जब हम, मतलब हम युवा पीढ़ी ने यह सोच बना रखी हैं की बड़े बुजर्गो की मदद करना, उनका मान-सम्मान करना, इंसानियत के नाते उनका ध्यान रखना एक प्रकार की ठेकेदारी लेना हैं। 
तो क्या?  उन बृद्ध एवं महान माताओं ने अपने जवान बच्चों को अपने देश एवं देश के लोगो की रक्षा करने के लिए सेना में भेजने की ठेकेदारी ले रखी है  
क्या? उन जवानो ने इस देश के उन लोगो की ठेकेदारी ले रखी है,  जो उनके बुजर्गों को आदर-सम्मान भी नहीं दे सकते।
क्या, उन बुजर्गो को यह सुनकर दुःख नहीं होता होगा की उनके बच्चे इस देश की रक्षा करने के लिए शहीद हो चुके हैं। लेकिन उन्हें दुःख के साथ-साथ गर्व भी होता है की उनके बहादुर बच्चो ने इस देश के लिए अपने प्राण भी दे दिए।

लेकिन जब में उस ऑटो वाले जैसे लोगो को देखती हूँ तो मुझे ऐसे लोगो पर बढ़ी शर्मिंदगी महसूस होती है की हमारे इस महान देश में इस तरह के लोग भी है जो इंसानीयत की क़द्र करना भी नहीं जानते और ऐसे लोग ही अपने ही देश में रहकर अपने ही देश का माहौल ख़राब करते हैं और दूसरी तरफ वो लोग है जिनकी सोच ही घटिया और छोटी हैं। हमें हमारी सोच और भावनाओ को महान बनाना होगा। तभी हमारा देश पुरे तन, मन से आगे बढ़ेगा और विकासशील से विकसित हो पायेगा।



इसलिए कृपया करके अपने संस्कारो को नहीं भूले एवं अपने बड़े बुजुर्गो का सम्मान करे और अपने आने वाली पीढ़ी को भी यही संदेश दे।
जय-हिन्द
         


                              

निष्कर्ष :-

हमें देश के अंदर की बुराइयों को खत्म करने के लिए पहले अपने अंदर की कमियों को सुधारना होगा, पर इसकी शुरुआत हमें ख़ुद से करनी होगी क्योकि बूंद-बूंद करके ही घड़ा भरता हैं। मतलब यह है की छोटी-छोटी अच्छाइयाँ मिलकर ही महानता का रूप लेती हैं।
                                            जय-हिन्द 
माधवी शर्मा
(लेखक)


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